गुरुवार, 19 मार्च 2015

क्‍या चाहिये .......... घंटा

अरे वाह साथियों, मैं तो ब्‍लाग लिखने लगा। क्‍या चीज है ये कम्‍प्‍यूटर भी, जब तक कम्‍प्‍यूटर पढा, तब तक तो केवल बस एक चीज जाना। जानते हैं, क्‍या। crtl+z । मतलब अंडु। ही, ही, ही,। मेरे गुरी बता कर जाते थे कि ये ऐसे करना है, आैर ये ऐसे करना है। उसके बाद डिलीट मार देते और कहते कि अब तुम करो। उसके बाद टीचर मैम को निगरानी के लिए भेज देते। बस मेरी चांदी। क्‍या करूं, थीं ही सुआब की। बाते ही करके सब कुछ हो जाता था। उपरवाले की दयासे मैं इस काम में उस्‍ताद हूं। अगर बातों की काबिलियत को सेक्‍स पावर से जोडा जाये तो आज शायद मेरे ध्रष्‍टराष्‍ट्र के बच्‍चों से भी ज्‍यादा बच्‍चे होते। सर आते, पूंछते। मैं कहता कि बस सर अभी दो मिनट में हो जायेगा, और फिर उस सुआब मैम से बात करने में लग जाता। काम अधूरा जो रह गया था, उसे पूरा करना भी तो था। जब दो-तीन बार सर पूंछ चुकते थे, तो मैं अंडु मार देता था। बस, अब जब आते, तो मैं कहता, देख लीजिये सर। बडा कठिन था। साला। उधर मजा भी पाता था, इधर तारीफ भी सुनता था कि बडे होशियार हो, तुरन्‍त सीख जाते हो। यही तो मजा है, सबके सामने काम हुआ, दो-दो लोगों की तारीफ मिली, मौज भी मिला, अब और क्‍या चाहिये .......... घंटा।